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लैपटॉप या लॉलीपॉप ....

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लैपटॉप ले लो....... टैबलेट ले लो ......... वो भी बिल्कुल  मुफ़्त हैं ऐसा ऑफर दुबारा नहीं मिलेगा तो आओ और ले जाओ वो भी  वारंटी  कार्ड के साथ. क्या लगता हैं आपको की ये किसी दुकानदार की कोई नई योजना हैं जनाब आप गलत फहमी में हैं ये हमारी उ. प सरकार  की नई योजना हैं जो एक तरफ ''ऊंट के मुंह में जीरा " का काम कर रहा हैं तो दूसरी तरफ "आग में घी का काम ". ये योजना भले ही विद्यार्थी कल्याण के लिए बनाई गई हो पर फायदा तो सरकार  का ही हो रहा हैं एक तीर से दो निशाने लगा रही हैं. ये जनता में प्रसाद भी बाँट रहे हैं और साथ ही प्रचार भी. यानि की जब आप ये लैपटॉप या टैब खोलेगे तो आपको इनकी सरकार के दर्शन करने ही पड़ेगे फिर वो चाहे वालपपेर , स्टीकर हो या फिर इनका बैग सभी पे रहेगा इनका नाम.पता नहीं इसमें कल्याण  किसका हैं सरकार का या फिर विद्यार्थीयो का ?  इसे आप आगे निकलने की होड़ कहे या फिर लुभाने का छलावा. शिक्षा दिन पर दिन अपने भाव बढाती जा रही हैं कई लोग वो नहीं पढ़ पा रहे  हैं जिसमे  उनकी रूचि हैं क्योकि उन विषयों की फीस इतनी जयदा  हैं, कही कही तो लोगो को उनकी जरूरत तक

अपनी हिम्मत हैं की हम फिर भी जीये जा रहे हैं ..................

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कोख में आई जब मैं माँ के .. दादी ने दुआ दी पोते के लिए, बुआ ने मन्नत मांगी भतीजे के लिए पापा ने कहा मेरा लाल आ रहा हैं, मेरे वंश का चिराग आ रहा हैं ...... तब माँ ने मुझसे हौले से कहा डर मत मेरी रानी ! हर अबला की हैं यही कहानी फिर भी हम यही कहे जा रहे हैं .... अपनी हिम्मत हैं की हम फिर भी जीये  जा रहे हैं जब पहली बार मैंने आँखे खोली  दादी का मुंह बना हुआ था       बुआ  माँ से नाराज़ थी    पापा की ख़ुशी भी खामोश थी  पर मेरी माँ ने मुझे ये कह गले लगाया ! ओ रानी !.................ओ रानी ! अब मैं लिखूगी  तेरी कहानी  तब साहस का धैंर्य आया  चल पड़ी मैं माँ की ऊँगली थामे  सफलता की उड़ान से आगे  लोग पक्षपातों  का दोष हम पर मढ़े जा रहे हैं .... अपनी हिम्मत हैं की हम फिर भी जीये  जा रहे हैं माँ की रसोई से उस उठते हुए धुए को देख मुझे उनके भविष्य का अंधकार दिखा उनके गले का मंगलसूत्र मुझे किसी पालतू जानवर का पट्टा लगा उनके हाथो की चूड़िया ..हथकडिया लगी पर माँ चुप थी और खुश थी इस गुलामी से पर मैं नहीं ..... देख माँ की स्तब्धता मैंने भी

वक्त हैं संहार का

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कल तक तो थी अबला अब  दुष्टो पर बला बनूगी ... आँखों में तेज़ भर बाज़ुओ में दम धर   हौसलों को बुलंद कर रण भूमि पर उतरुगी ..... अब जशन नहीं मानेगा मेरी हार  का ....... क्योकि वक्त हैं संहार का  .... उतार फैकूगी उन  धर्म  ग्रन्थो का बोझ  जो रोकता हैं मुझे  टोकता हैं मुझे  कुछ कहने से  कुछ करने से  रोती रही अगर तो ये दुनिया और रुलाएगी  डरी जो एक पल मैं इनसे अगर  पूरी जिन्दगी ये हम पर हुकूमत चलाएगी इंतज़ार नहीं करुगी किसी के वार का  क्योकि वक्त हैं संहार का  ... अब राखी पर  निर्भर नहीं  आत्मनिर्भर बनूगी ..... शास्त्रों को त्याग कर  शस्त्रों का ज्ञान कर  नारी की एक नयी परिभाषा बनूगी  जिसमे हो ..... स्वर सिंघनी सा बल गजनी सा  कोमल संग कठोर हो  ममता संग स्वार्थी हो  जो लड़ सके अपने लिए  ऐसी ही वीर बनूगी .... आखिर प्रश्न हैं नारी के मान का सम्मान का  क्योकि वक्त हैं संहार का  ... हमारी एक आवाज़  हमारा एक विचार  नारी को उसका अधिकार दिलाएगा                                                                          (अर्चना चतुर्वेदी )