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पहचान

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पहचान  क हते हैं जिन्दगी जब सिखाती  हैं तो अच्छा ही सीखती है .........पर उनका क्या जो हर दिन जिन्दगी से लड़ के जीते हैं . सीखना तो दूर की बात हो गई यहाँ तो कई लोग मरने के लिए भी जंग लड़ते हैं . हर दिन , हर लम्हा और हर पल सिर्फ और सिर्फ हम में से कई का ये सोचते हुए बीत जाता हैं की क्या करे  और क्या न करे ? घर वालो की सुने या दोस्तों की , रिश्तेदारों की सुने या चाहने वालो की । इन सबकी आवाजो में खुद की आवाज़ सुनाई  ही नहीं देती की हम क्या चाहते  हैं अपने बारे में। कभी चुप रहे तो दुनिया वालो ने समझा कमज़ोर हैं हम , जब हँसे तो कहा बेशर्म हैं हम . जब इश्वेर के बनाये गये इंसान से प्यार किया तो कहा पागल हैं हम और जब उसी से नफरत की तो कहा बेदर्द हैं हम ,जीवन की हर कसौटी ने  हमे परखा पर कभी समझा नहीं शायद यही वजह हैं जो आज तक हम अपने को समझ ही नहीं पाए हैं की आखिर क्या हैं हम  ? असफलताओ से थक  हार कर जब हमने सोचा  बस अब और नहीं ..अब नहीं बढ़ सकता अब मैं और नहीं चल सकता , कब तक और रोऊंगा और कब तक छुपाऊ अपनी कमजोरी को किस से  बताऊ की  मुझे बस एक मौका चाहिए अपने को साबित करने का पर मुझे दुत