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कहा गये वो दिन दिवाली के ????     आ ज जब वो दिन याद करती हू तो लगता है की जैसे हम अपने पीछें कितने ऐसे लम्हों यादों को पीछें छोंड़ आये है जो हमारे लिए कितने खास थे और उस समय हमें उनकी कद्र नहीं थी या कभी हमनें की नहीं। जब हम कल में जी रहे थे तो हम बेहतर आज की तैयारी में लगे हुए थे पर जब आज को देखते है तो लगता है की इस आज से वो कल ही बेहतर था। आज भी वो दिन मुझे याद है जब नवम्बर आते ही घरों में चहल–पहल शुरू  हो जाया करती थी और हमें भी अंदाजा हो जाता था कि दिवाली आने को हैं। कितना अजीब लगता है आज जब हमें महीनें भर पहलें ही पता होता हैं कि दिवाली कब है फिर भी कोइ नया एहसास मन में नही आता। नवम्बर का महीना आते ही दस्तक दे जाता था और मानों चुपके से कह रहा हो मै आ गया हू और अपनी ठण्ड़ी . ठण्ड़ी हवाओं से हमारे श रीर को छुता और कहता मै आ गया हू पर आज मानों साल पे ंसाल गुजर जाते है और पता ही नहीं चलता। मानों नवम्बर कहता कि मैं अकेला नहीं आया हू साथ में दिवाली भी ले कर आया हू  बाट लो ख़ुशी जितनी बाटना चाहते हों जोड़ लो उन टूटे दिलों को जिन्हें जोड़ना चाहते हो मैं तुम्हारे साथ हू । दिवाली आने
आज इस जिन्दगी को एक नए तरीके से देखने की एक नई सुरुवात  की है / आशा है आप  इस नए नजर्रिये का   तहे दिल  से स्वागत करेगे ...........................................................................